देवनागरी लिपि और हिन्दी वर्तनी पर आईएस 16500:2012 तैयार किया गया है। भाषा मानव व्यवहार और संप्रेषण का एक सशक्त माध्यम है। भाषा के माध्यम से मानव अपने भावों और विचारों को दूसरों तक पहुंचाने में समर्थ होता है। भाषा की यह निरंतरता प्राचीन साहित्य के रूप में उपलब्ध है। हिन्दी भाषा की लिपि देवनागरी है, जो संस्कृत, मराठी, कोंकणी, संताली, बोडो, नेपाली, मैथिली, सिंधी और डोगरी भाषाओं की भी लिपि है। यह मानक लिपि और वर्तनी के माध्यम से राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एकरूपता लाने और उसका निरंतर विकास करने के उद्देश्य से तैयार किया गया है। अतः विदेशी विद्यार्थियों और अहिन्दी भाषियों को हिन्दी सिखाने के लिए यह मानक अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस प्रकार ब्यूरो द्वारा तैयार किया गया यह मानक हर दृष्टि से महत्वपूर्ण है।
यह मानक हिन्दी भाषा की लिपि और वर्तनी को मानकीकृत करने की दिशा में अत्यंत महत्वपूर्ण है। मानक में देवनागरी लिपि और हिन्दी वर्तनी के उपयोग निर्दिष्ट किए गए हैं। इसमें हिन्दी वर्तनी, वर्ण-माला, उसकी लेखन विधि, संयुक्त व्यंजन, अनुस्वार और अनुनासिक, विदेशी ध्वनियां, विराम-चिन्ह आदि का विवरण सम्मिलित किया गया है। भारतीय अंकों को उनके अंतरराष्ट्रीय स्वरूप में ही लिया गया है। उद्धरण या अन्य ऐसे किसी कार्य में प्रयोग करने के लिए भाषा की एकरूपता एवं स्पष्टता अनिवार्य है। इसके लिए भी इस पर नियम निर्धारित किए गए हैं। मानक में वर्णों की तकनीकी ड्राइंग, कुंजीपटल और फॉन्ट के संबंध में सुझाव अकारादि क्रम, हिन्दी वर्तनी, संयुक्त वर्ण, अन्य व्यंजन, कारक चिन्ह, परसर्ग, अव्यय, अनुनासिक और अनुस्वार चिन्ह, विसर्ग, हल चिन्ह और हिन्दी में आगत ध्वनियां, अन्य नियम, विराम चिन्ह, उद्धरण, कोष्ठक इत्यादि शामिल है ।