मातृभाषा
व्यक्ति जब जन्म लेता है तो खुद को अभिव्यक्त करने के लिए भाषा को अपना माध्यम बनाता है। जन्म लेने के बाद मनुष्य जो सबसे पहली भाषा सीखता है वही उसकी मातृभाषा होती है। भाषा ही किसी भी व्यक्ति की राष्ट्रीयता की पहचान होती है। मनुष्य चाहे जितना भ्रमण कर ले या फिर कितनी ही भाषाओं का ज्ञान प्राप्त करें लेकिन जन्म के साथ मिली उसकी भाषा पहचान के रूप में सदैव उसके साथ रहती है। व्यक्ति के अस्तित्व की पहचान उसकी मातृभाषा से होती है तो उसका भी कर्तव्य बनता है कि वह अपनी मातृभाषा के प्रति कृतज्ञता प्रकट करे।
जब बात भारत की हो तो अनेकता में एकता की तस्वीर अपने आप ही सामने आ जाती है। भारत की मातृभाषा हिंदी है और भारत को विविधताओं से भरा बहुभाषी राष्ट्र कहा जाता है क्योकि यहाँ पर अनेकों भाषाएँ और बोलियाँ बोली जाती हैं। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 343 द्वारा हिंदी को भारत संघ की राजभाषा का दर्जा दिया भी दिया गया क्योंकि राजभाषा राष्ट्र की सामाजिक-सांस्कृतिक अस्मिता की अभिव्यक्ति के रूप में कार्य करती है। इस प्रकार भारत की बहुभाषिक स्थिति में हिंदी के प्रयोग की संभावनाएं अधिक है। भारत की आठवीं अनुसूची में शामिल 22 भाषाएं हिंदी की सौहाद्री है क्योकि हिंदी ही अपने मानस में अधिकांश भारतीय भाषाओं एवं बोलियों के तत्वों को आत्मसात किए हुए हैं।
मातृभाषा दिवस
हर किसी को अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़नी पड़ती है तभी कहीं जाकर स्वयं को पहचान मिलती है। मातृभाषा के वजूद की भी कहानी कुछ ऐसी ही है। 21 फरवरी, 1952 को बांग्लादेश (उस समय पूर्वी पाकिस्तान) ने अपनी मातृभाषा बांग्ला को राष्ट्रीय दर्जा दिए जाने के लिए पकिस्तान से लड़ाई लड़ी। मातृभाषा की अस्तित्व की लड़ाई में कुछ लोगों को अपनी जान भी गवानी पड़ी लेकिन अंत में बांग्लादेश को बंगाली भाषा के रूप में मातृभाषा भी मिली।
यूनेस्को महासभा ने नवंबर 1999 में दुनिया की उन भाषाओं के संरक्षण और संवर्धन की ओर दुनिया का ध्यान आकर्षित करने के लिए वर्ष 2000 से प्रति वर्ष 21 फ़रवरी को अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाने का निश्चय किया।
मातृभाषा दिवस का उद्देश-
हर भारतीय अपनी मातृभाषा पर गर्व करता है लेकिन यह भी सच है कि मातृभाषा की बात कुछ अवसरों पर ही की जाती है। अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस का उद्देश्य भाषाओं और भाषाई विविधताओं को बढ़ावा देना है। राष्ट्र पिता महात्मा गाँधी ने मातृभाषा हिंदी के प्रसार पर हमेशा ही बल दिया और कहा कि ‘’केवल हिंदी ही भारत को एकता के सूत्र में पिरो सकती है।‘’ रविन्द्र नाथ टैगोर ने भी कहा था कि “भारतीय भाषाएँ नदियाँ है और हिंदी भाषा महानदी है।” यह सच है कि मातृभाषा के अस्तित्व के बिना मनुष्य का भी कोई ख़ास वजूद नहीं रह पाता है क्योकि मातृभाषा ही है जो अंतर्राष्ट्रीय पटल पर व्यक्ति को पहचान दिलाती है। इसलिए मनुष्य का भी कर्त्तव्य बनता है कि वह मातृभाषा को अपना गौरव समझें और उसके प्रसार में योगदान दें।
Written By: Vinod Kalra, Hindi Department
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